जगन्नाथ कथा
राजा इंद्रदयुम्न मालवा का राजा था जिनके पिता का नाम भारत और माता सुमति था। राजा इंद्रदयुम्न को सपने में हुए थे जगन्नाथ के दर्शन | कई ग्रंथों में राजा इंद्रदयुम्न और उनके यज्ञ के बारे में विस्तार से लिखा है। उन्होंने यहां कई विशाल यज्ञ किए और एक सरोवर बनवाया। एक रात भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन दिए और कहा नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं। तुम एक मंदिर बनवाकर उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो। राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा।
King Indradyumna was the king of Malwa whose father's name was Bharat and mother's name was Sumati. King Indradyumna had darshan of Jagannath in his dream. Many texts have written in detail about King Indradyumna and his Yagya. He performed many huge yagya here and got a lake built. One night Lord Vishnu appeared to him in a dream and said that there is an idol of mine in a cave of Nilanchal mountain, it is called Neelmadhav. Build a temple and install this idol of mine in it. The king sent his servants in search of Nilanchal mountain.
उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति | विद्यापति ने सुन रखा था कि सबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है। वह यह भी जानता था कि सबर कबीले का मुखिया विश्ववसु नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है। चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया। आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया। उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी।
One of them was the Brahmin Vidyapati. Vidyapati had heard that the people of the Sabar clan worshiped Nilamadhav and had hidden this idol of their deity in a cave in the Nilanchal mountain. He also knew that Vishwavasu, the head of the Sabar clan, was a worshiper of Nilamadhav and had hidden the idol in the cave. Clever Vidyapati married the chief's daughter. At last he succeeded in reaching Nilamadhav's cave through his wife. He stole the idol and brought it to the king
विश्ववसु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ । अपने भक्त के दुख से भगवान भी दुखी हो गए। भगवान गुफा में लौट गए, लेकिन साथ ही राज इंद्रदयुम्न से वादा किया कि वो एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वो एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे | राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा। भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का बड़ा टुकड़ा उठाकर लाओ, जो द्वारिका से समुद्र में तैरकर पुरी आ रहा है।
Vishwavasu was deeply saddened by the theft of the idol of his deity. God also became sad due to the sorrow of his devotee. The Lord returned to the cave, but at the same time promised King Indradyumna that he would definitely return to him one day provided he would one day build a huge temple for him. The king got the temple built and asked Lord Vishnu to sit in the temple. God said that you bring a big piece of tree floating in the sea to make my idol, which is coming to Puri by floating in the sea from Dwarka.
राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया लेकिन सब लोग मिलकर भी उस पेड़ को नहीं उठा पाए । तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कबीले के मुखिया विश्ववसु की ही सहायता लेना पड़ेगी। सब उस वक्त हैरान रह गए, जब विश्ववसु भारी- भरकम लकड़ी को उठाकर मंदिर तक ले आए। अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की। राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश कर ली लेकिन कोई भी लकड़ी में एक छैनी तक भी नहीं लगा सका । तब तीनों लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धरकर आए
The king's servants found the piece of that tree, but all the people together could not lift that tree. Then the king understood that the help of Vishvavasu, the head of the Sabar clan, who was an exclusive devotee of Nilamadhav, would have to be taken. Everyone was surprised when Vishwavasu carried the heavy wood to the temple. Now it was the turn to carve the idol of God out of wood. The king's artisans tried a million times but no one could even apply a chisel to the wood. Then Lord Vishwakarma, the master craftsman of the three loks, appeared in the form of an old man.
उन्होंने राजा को कहा कि वे नीलमाधव की मूर्ति बना सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने अपनी शर्त भी रखी कि वे 21 दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे। कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता। उनकी शर्त मान ली गई। लोगों को आरी, छैनी, हथौड़ी की आवाजें आती रहीं। राजा इंद्रदयुम्न की रानी गुंडिचा अपने को रोक नहीं पाई। वह दरवाजे के पास गई तो उसे कोई आवाज सुनाई नहीं दी । वह घबरा गई। उसे लगा बूढ़ा कारीगर मर गया है। उसने राजा को इसकी सूचना दी। अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी ऐसा ही लगा। सभी शर्तों और चेतावनियों को द्रकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया।
He told the king that he could make the idol of Nilamadhav, but at the same time he put his condition that he would make the idol in 21 days and make it alone.
No one can see them being made. His condition was accepted. People kept hearing the sound of saw, chisel, hammer. King Indradyumna's queen Gundicha could not restrain herself. When she went near the door, she did not hear any sound. She panicked. He thought the old artisan was dead. He informed the king about this. No sound was heard from inside, so the king also felt the same. Bypassing all the conditions and warnings, the king ordered the door of the room to be opened.
जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति गायब था और उसमें 3 अधूरी मूर्तियां मिली पड़ी मिलीं। भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे, लेकिन उनकी टांगें नहीं, जबकि सुभद्रा के हाथ-पांव बनाए ही नहीं गए थे। राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक तीनों भाई बहन इसी रूप में विद्यमान हैं।
As soon as the room was opened, the old man was missing and 3 incomplete idols were found lying in it. Lord Nilamadhav and his brother had small hands made, but not their legs, while Subhadra's hands and feet were not made at all. The king installed these incomplete idols considering it as the will of God. Since then till today all the three brothers and sisters are present in this form.
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