पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीविष्णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था. श्रीकृष्ण ने क्योंकि मानव रूप में जन्म लिया था इसलिए प्रकृति के नियम अनुसार उनकी मृत्यु निश्चित थी.
जरा नामक एक शिकारी ने श्रीकृष्ण को मृग ( हिरन ) समझकर विषयुक्त बाण चला दिया, जो उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर देह त्याग दी।
श्रीकृष्ण के मानव शरीर त्याग करने के बाद जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया, तो उनका दिल धड़क रहा था। पांडवों ने उनके हृदय को समुद्र में प्रवाहित किया।
जब कृष्ण का हृदय ओडिशा के समुद्र तट पर पहुंचा, तो वहां के राजा इंद्रद्युमन को उसी रात सपना आया। श्रीकृष्ण ने स्वप्न में राजा को दर्शन दिए । कृष्ण ने सपने में उनसे कहा कि वह समुद्र तट पर एक लकड़ी के लट्ठे के रूप में मौजूद हैं। उससे मूर्ति का निर्माण करवाओ।
सुबह उठकर राजा समुद्र तट पहुंचे, वहां उनको यह जल में बहता हुआ लट्ठा मिला और उन्होंने इस पिंड रूपी दिल को भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के
अंदर स्थापित कर दिया। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां तैयार की और फिर उसे पुरी (वर्तमान ओडिशा) के मंदिर में स्थापित करवाई।करवाई।
यह आज भी जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में मौजूद है. भगवान का हृदय इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है. प्रत्येक 12 साल में जब जगन्नाथजी की मूर्ति बदली जाती है, तो इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रख दिया जाता है.
मूर्तियां बदलते वक्त बरती जाती है ये सावधानियां
मंदिर की परंपरा के अनुसार जब हर 12 साल में मंदिर की मूर्ति बदली जाती हैं तो ऐसे में इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में स्थापित कर दिया जाता है. इस दौरान कई कड़े नियम अपनाए जाते हैं.
जब नई मूर्तियां स्थापित होती हैं तो मंदिर के आसपास अंधेरा कर दिया जाता है.साथ ही जो पुजारी ये कार्य करता है उसकी आंखों में पट्टी बंधी होती है और हाथों में कपड़ा लपेट दिया जाता है. कहते हैं कि इस रस्म को जिसने देख लिया उसकी मृत्यु हो जाती है.
मंदिर के कुछ ऐसे रहस्य जिसे आजतक विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया
हवा से विपरित लहराता है झंडा
मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है. हवा का रुख जिस दिशा में होता है झंडा उसकी विपरीत दिशा में लहराता है.
रसोई का रहस्य
कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है. रसोई का रहस्य ये है कि यहां भगवान का प्रसाद पकाने के लिए सात बर्तन एक के ऊपर एक रखे जाते हैं. ये बर्तन मिट्टी के होते हैं जिसमें प्रसाद चूल्हे पर ही पकाया जाता है. आश्चर्य की बात ये है कि इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान सबसे पहले पकता है फिर नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है. चाहे लाखों भक्त आ जाएं लेकिन प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और न व्यर्थ जाता है. मंदिर के बंद होते ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है.
नहीं नजर आते पक्षी
आमतौर पर मंदिर, मस्जिद या बड़ी इमारतों पर पक्षियों को बैठे देखा होगा. लेकिन पुरी के मंदिर के ऊपर से न ही कभी कोई प्लेन उड़ता है और न ही कोई पक्षी मंदिर के शिखर पर बैठता है. भारत के किसी दूसरे मंदिर में भी ऐसा नहीं देखा गया है.
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