भगवान राम हम सभी के पूज्य हैं। मंदिरों में हम सभी भगवान की पूजा के लिए जाते हैं। वहीं, रामनामी समाज के लोगों के रोम-रोम में राम बसते हैं। इस समाज के लोगों ने मंदिर जाने से रोके जाने पर अपने तन को ही मंदिर बना लिया है।
रामनामी समाज परशुराम द्वारा स्थापित एक हिंदू संप्रदाय है जो भगवान राम की पूजा करता है। मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ में रहने वाले, इसके अनुयायी अपने शरीर पर "राम" शब्द का टैटू गुदवाते हैं और "राम" शब्द छपे शॉल और मोर के पंखों से बने मुकुट पहनते हैं। समूह की आबादी का अनुमान लगभग बीस हजार से एक लाख से अधिक तक का लगाया जाता है।
कहा जाता है कि भारत में भक्ति आंदोलन जब चरम पर था, तब सभी धर्म के लोग अपने अराध्य देवी-देवताओं की रजिस्ट्री करवा रहे थे। उस समय उनके समाज के हिस्स में न तो मूर्ति आयी और न ही मंदिर। उनसे मंदिर के बाहर खड़ा होने तक का हक छीन लिया गया था।
रामनामी समाज के लोगों को छोटी जाति का बताकर उन्हें मंदिर में नहीं घुसने दिया गया था। साथ ही सामूहिक कुओं से पानी के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद भगवान राम के प्रति इनकी आस्था शुरू हुई थी।
इसी घटना के बाद रामनामी संप्रदाय के लोगों ने मंदिर और मूर्ति दोनों को त्याग दिया। अपने रोम-रोम में राम को बसा लिया और तन को मंदिर बना दिया। अब इस समाज के सभी लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं और इनकी पहचान ही अलग है।
इस संप्रदाय की स्थापना छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव चारपारा में हुई थी। एक सतनामी युवक परशुराम ने 1890 के आसपास की थी। छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय के लिए राम का नाम उनकी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक ऐसी संस्कृति, जिसमें राम नाम को कण-कण में बसाने की परंपरा है।
रामनामी समुदाय यह बताता है कि श्रीराम भक्तों की अपार श्रद्धा किसी भी सीमा से ऊपर है।
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