सुकून कहूं या द्धारिका एक ही बात हैं...🥰

द्वारका गुजरात राज्य में देवभूमि द्वारका जिले का एक शहर और नगरपालिका है। यह अरब सागर के सामने कच्छ की खाड़ी के मुहाने पर गोमती नदी के दाहिने किनारे पर ओखामंडल प्रायद्वीप के पश्चिमी किनारे पर स्थित है। 
बावन गज की धजा फरके झूकते हजारों शीश छप्पन कदम पर स्वर्ग मिले ओर मिले द्वारकाधीश ...

 
द्वारका नगरी एक ऐसा शहर है । जेसे की स्वर्ग जो सुकुन हमे कीसी बी कोने में नही मिलता  वो सुकून द्वारका में मिलता है। एक बार द्वारकाधीश की  धजा के दर्शन कर लिया तो आपका हर दु:ख दर्द सब  भुल जाओगे।  यहा के दर्शन का महीमा बहुत ज्यादा होता है जो कोई यात्री जाता हैं । अभीभूत हो जाता है वो एक दम चकाचोंद हो जाता है। हर आदमी जो होता है । अपनि जिंदगी को कीसी चिज के साथ जोडता है। लेकिन भारतीय परंपरा मैं आप अपनी जिंदगी को सुधार ने के लिए एक कोई देवता के साथ अपनी जिंदगी को जोडते है । 
दुनिया के किसी कोने में ऐसा आनंद नहीं है, वह आनंद द्वारकाधीश के चरणों में है..


बद्रीनाथ मै पिंडदान का महत्व है । रामेश्वर मै जल का महत्व है इसी तरह द्वारका मै शृंगार का महत्व है राजा है। राजा की तरह लाड लड़ाना   पड़ेगा। द्वारकाधीश का श्रृंगार वीभ्भिन रंगो के रेशम के वस्त्रों फूलों ओर रत्नों से किया जाता हैं । आम तोर पर हर रोज इस मंदिर में करीब दस हजार लोग आते हैं। पर क्रिष्न के जनमोत्सव जनमाष्टी पर ये संख्या बढ़कर डेड लाख हो जाती हैं । द्वारकाधीश की प्रतिमा की  अनेकों कहानिया है । एक कहानी ये स्पष्ट करती हैं ईस प्रतिमा की  आंखे क्युं अधुरी बनी है ईस कथा के अनुसार ये प्रतिमा  सावित्री वाव यानि (कुऐ) मे १५ वी सताब्दी मूसलिम आक्रमण कार्यो के डर से पंडितों ने ईस प्रतिमा को कुऐ मे छुपा दीया कहते हैं कई साल बाद क्रिष्न एक ब्राह्मण के सपने में आऐ ओर मुर्ति को कुऐ से एक निरधारित समय के बाद निकाल ने का आदेश दिया ये सूनते ही वो ब्राह्मण बेताब हो गए ओर उन्होंने मुर्ति को समय से पहले ही निकाल लिया ईसलिए  ईस प्रतिमा की आखें पुरी तरह से बन नहीं पाई ओर आज बी आधी बंद दीखती है तब से काले पत्थर से बनी सवा दो फीट उचीं चतुरभुर्ज  की ये मुर्ति यहा स्थापित है। चतुरभुर्ज रुप क्रिष्न का  सबसे भव्य  रुप माना जाता हैं। ईस रुप में उनके चार हाथो में कमल गदा शंख ओर चक्र होता है। 

।। जहा "श्री कृष्ण" का वास है, वो जगह स्वर्ग से भी खास है..♥️।।


एक ऐतिहासिक शहर द्वारका गोमती नदी और अरब सागर के संगम पर बसी विश्वास ओर इतिहास को जोडती द्वारका आबादी ५० हजार से कम इस शहर ने अलग अलग काल में अलग अलग सासको को देखा हैं गुप्त वंश से लेकर राजपूत मराठा मूगलो ओर अंग्रेजो तक द्वारका का सबसे पहला एतिहासिक का उलेख  गुजरात के भावनगर मे मीले छठी सदी के पालिताना कोपर  प्लेटस पर मिलता हैं

पर सद्धालू के लिए ये हमेशा देवभूमि रहा है भारत के चार धामो मेसे एक सात सबसे पवित्र नगर सतपूर्यो मेसे एक हिन्दू धर्म ग्रन्थों  के अनुसार इन सप्तपुर्यो का भगवान से कोई ना कोई नाता रहा हैं ओर आज बी  उनका तेज महसूस होता हैं ओर द्वारका कोतो इन ग्रंथों मे मोक्ष का द्वार माना गया है।  इसे श्री क्रिष्ण ने बसाया हैं। 
भगवान विष्णु के आठवें अवतार क्रिष्ण के कई नाम कई रूप है ओर उनका हर रूप पूजा जाता हैं। उनका जन्म तो हुआ मथुरा के कारागार में लेकिन उनके पिता वासुदेव ले गए उन्हें गोकुल उनकी सूरक्षा के लिए । जहाँ वो गाय चराते माखन चुराते राधा ओर गोपियों के साथ रास लीला रचाते बडे हुए ।  ओर फिर अपने मामा ओर मथुरा के गूर राजा कंस का वद किया कंस के ससुर जरासंद के बार बार मथुरा  पर आक्रमण  करने के कारण वो सारी प्रजा को लेकर सौराष्ट्र आ गए ओर द्वारका बसाई । 



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