During the Dwapar Yuga, when Lord Shri Krishna was born on the earth, then the gods and goddesses started coming to the earth to meet him from time to time, changing their roop. Where Lord Shiva was going to stay behind in this race, he also became eager to come on earth to meet his beloved God.

द्वापर युग के समय जब भगवान श्री कृष्ण ने धरती में जन्म लिया तब देवी-देवता वेश बदलकर समय-समय पर उनसे मिलने धरती पर आने लगे। इस दौड़ में भगवान शिव जी कहां पीछे रहने वाले थे, अपने प्रिय भगवान से मिलने के लिए वह भी धरती पर आने के लिए उत्सुक हुए।


But he stopped for a moment thinking that if he was going to meet Shri Krishna, he should also take some gifts with him. Now they started getting worried thinking that which gift should be taken which would be dear to Lord Shri Krishna and stay with him forever.

परंतु वह यह सोच कर कुछ क्षण के लिए रुके की यदि वे श्री कृष्ण से मिलने जा रहे हैं तो उन्हें कुछ उपहार भी अपने साथ ले जाना चाहिए। अब वे यह सोच कर परेशान होने लगे कि ऐसा कौन सा उपहार ले जाना चाहिए जो भगवान श्री कृष्ण को प्रिय भी लगे और वह हमेशा उनके साथ रहे।

then Shiv ji remembered that he had a superpowerful bone of Rishi Dadhichi with him. Rishi Dadhichi is the same great sage who sacrificed his body for the sake of Dharma and donated all the bones of his mighty body. With the help of those bones Vishkarma made three bows Pinaka, Gandiva, Sharang and Vraj for Indra.

तभी शिव जी को याद आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है। ऋषि दधीचि वही महान ऋषि है जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था व अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थी। उन हड्डियों की सहायता से विश्कर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गांडीव शारंग तथा इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था।

Lord Shiva made a beautiful and graceful flute by grinding that bone. When Lord Shiva reached Gokul to meet Lord Shri Krishna, he gifted that flute to Shri Krishna. Blessed him, since then Lord Shri Krishna keeps that flute with him.

शिव जी ने उस हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बंसी प्रदान की। उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।